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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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विश्वकर्मा चालीसा Vishwakarma Chalisa

Vishwakarma
, गुरूवार, 22 फेब्रुवारी 2024 (08:59 IST)
॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं,
चरणकमल धरिध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,
दीजै दया निधान ॥
 
॥ चौपाई ॥
जय श्री विश्वकर्म भगवाना ।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
 
शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
 
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर ।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
 
अद्‍भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
 
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं ।
कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
 
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
अद्‍भुत वरण विराज सुवेशा ॥
 
एकानन पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
 
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
 
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
 
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
 
दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
 
सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
 
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
 
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
 
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
तुम सबकी पूरण की आशा ॥
 
भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
 
अमृत घट के तुम निर्माता ।
साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
 
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
 
विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
 
खान-पान हित भाजन नाना ।
भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
 
विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
 
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
विविध महा औषधि सविवेका ॥
 
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
 
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
 
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
कियउ काज सब भये अशोका ॥
 
अद्भुत रचे यान मनहारी ।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
 
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
विज्ञान कह अंतर नाही ॥
 
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
 
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
 
मंगल-मूल भगत भय हारी ।
शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
 
चारो युग परताप तुम्हारा ।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
 
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
 
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
 
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
 
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
 
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
 
इक सौ आठ जाप कर जोई ।
छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
 
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा ।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
 
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
 
मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
 
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित,
ह्रदय बसहु सूर भूप ॥

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